This is featured post 1 title
Replace these every slider sentences with your featured post descriptions.Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha - Premiumbloggertemplates.com.
This is featured post 2 title
Replace these every slider sentences with your featured post descriptions.Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha - Premiumbloggertemplates.com.
This is featured post 3 title
Replace these every slider sentences with your featured post descriptions.Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha - Premiumbloggertemplates.com.
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
सेकुलर का अर्थ
रविवार, 8 जून 2008
शेर - ओ - शायरी
सरफरोशी की हवश कहती है , चल क्या होगा । ।
बड़े शौक व तवज्जो से सुना दिल के धड़कनें को ।
में यह समझा कि शायद आपनें आवाज़ दी होगी । । होगी । ।
नियाजे -इश्क की ऐसी भी एक मंजिल है ।
जहाँ है शुक्र शिकायत किसी को क्या मालूम । ।
मंगलवार, 6 मई 2008
एक कहानी किश्तों में (गतांक से आगे )
की तरह पिघल गया । बड़े अदब से बोला ," मालिक हुक्म बजा लाता हूँ ।" सौदागर की रूह एक बार फ़िर काँप उठी फिर भी उसने जी कड़ा करके पूछा ,"शहर कितनी दूर है ?" बस चार घंटे का सफर और बाकी है ,दोपहर ढलते ढलते हम वहां लंगर डाल देंगे । आपकी कृपा से मालिक । " "जी ...जी .... । " सौदागर की जीभ में एक बार फ़िर कांटे से उग आए । वह अनमना सा नाश्ता -कक्ष में पहुँचा । सस्ते सिगार और सस्ती शराब की गंध से उसका सिर भिन्ना गया। लेकिन उसको देखते ही वहां सारे लोग दास भाव से हाथ जोड़कर खड़े हो गए। सौदागर की रीड की हड्डी में सुरसुराहट होनें लगी । सौदागर अपने केबिन की ओर बदहवास दोड़ा , उसकी पुष्ट टाँगें उसके नियंत्रण में नहीं थीं । केविन में प्रवेश करके उसने दरवाजा बंद कर लिया ," ये क्या हो गया ? मैनें कैसी मूर्खता की ?"वह बड़बड़ाया । " दोपहर तक मेरे प्रायश्चित की ख़बर पूरे शहर में होगी । लोग मुझे देवदूत मान रहें हैं । हाय ! मेरा प्यारा शीशमहल । कितनी तिकड़म से उसे हतियाया था । शहर की जमीन पर पैर रखते ही पराया हो जाएगा " वह चिल्लाया , " यदि प्रार्थना करनी ही थी तो सबके सामने करने की जगह अगर मन में ही कर लेता तो क्या बिगड़ जाता ? " उसे अपनी मरी हुयी नानी पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था । उसे भी उसी समय अपनी नसीहत याद दिलानी थी । " उफ़ .......उफ़ । " सौदागर ने अपना सर पलंग की मसहरी पर धडाक से मारा . सौदागर एक बार फ़िर बेहोश हो गया । .................................................क्रमशः
************************************************************************
धरती पर नरक कहाँ से आया
जय श्री गुरुवे नमःसोचो जिसने तुम्हें सुंदर सृष्टि दी , जो किसी भी प्रकार से स्वर्ग से कम नहीं है , आश्चर्य ! वहां नर्क (Hell) भी है । क्यों ? नर्क हमारी कृतियों का प्रतिफलन है । हमारी स्वार्थ भरी क्रियाओं मैं नर्क को जन्म दिया है । हमने अवांछित कार्यों के द्वारा अपने लिए अभिशाप की स्थिति उत्पन्न की है । स्पष्ट है कि नर्क जब हमारी उपज है , तोइसे मिटाना भी हमें ही पड़ेगा । सुनो कलियुग में पाप की मात्रा पुण्य से अधिक है जबकि अन्य युगों में पाप तो था किंतु सत्य इतना व्यापक था कि पापी भी उत्तमतरंगों को आत्मसात करने की स्थिति में थे । अतः नर्क कलियुग के पहले केवल विचार रूप में था , बीज रूप में था । कलियुग में यह वैचारिक नर्क के बीजों को अनुकूल और आदर्श परिस्थितियां आज के मानव में प्रदान कीं। शनै : शनैः जैसे - जैसे पाप का बोल-बालहोता गया ,नर्क का क्षेत्र विस्तारित होता गया । देखो । आज धरती पर क्या हो रहा है ? आधुनिक मनुष्यों वैचारिक प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि हुयी है । हमारे दूषित विचार से उत्पन्न दूषित ऊर्जा ( destructive energy ) , पाप - वृत्तियों की वृद्धि एवं इसके फलस्वरूप आत्मा के संकुचन द्वारा उत्त्पन्न संपीडन से अवमुक्त ऊर्जा , जो निरंतर शून्य (space) में जा रही है , यही ऊर्जा नर्क का सृजन कर रही है , जिससे हम असहाय होकर स्वयं भी झुलस रहे हैं और दूसरो को भी झुलसा रहे हें । ज्ञान की अनुपस्थिति मैं विज्ञान के प्रसार से , सृष्टि और प्रकृति की बहुत छति मनुष्य कर चुका है । उससे पहले की प्रकृति छति पूर्ति के लिए उद्यत हो जाए हमें अपने- आपको बदलना होगा । उत्तम कर्मों के द्वारा आत्मा के संकुचन को रोकना होगा , विचारों में पवित्रता का समावेश करना होगा । आत्मा की उर्जा जो आत्मा के संपीडन के द्वारा नष्ट होकर नर्क विकसित कर रही है उसको सही दिशा देने का गुरुतर कर्तव्य तुम्हारे समक्ष है ताकि यह ऊर्जा विकास मैं सहयोगी सिद्ध हो सके । आत्मा की सृजनात्मक ऊर्जा को जनहित के लिए प्रयोग करो । कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा । नर्क की उष्मा मद्धिम पड़ेगी और व्याकुल सृष्टि को त्राण हासिल होगा । आत्म - दर्शन (स्वयं का ज्ञान ) और आत्मा के प्रकाश द्वारा अपना रास्ता निर्धारित करना होगा । आसान नहीं है यह सब लेकिन सृष्टि ने क्या तुम्हें आसन कार्यों के लिए सृजित किया है ? सरीर की जय के साथ - साथ आत्मा की जयजयकार गुंजायमान करो । सफलता मिलेगी । सृष्टि और सृष्टि कर्ता सदैव तुम्हारे साथ है । प्रकृति का आशीर्वाद तुम्हारे ऊपर बरसेगा । *****************जय शरीर । जय आत्मा । । ******************
सोमवार, 5 मई 2008
ढाई आखर
ठीक एक महीने के बाद मैं फ़िर आपकी महफ़िल में आ गया हूँ । प्रेम के ढाई आखर और ढेरों शुभ - कामनाओं के साथ। एक शेर आपके विचार के लिए पेश है । कृपया दिल खोल कर अपनी टिप्पणीभेजें । :-
"दिल है तो उसी का है , जिगर है तो उसी का है ,
अपने को राह -ऐ -इश्क में बर्बाद जो कर दे । "
बस उसी का दिल -दिल है , जिगर , जिगर है ----प्रेम की राह पर जो अपनें को पूरा का पूरा मिटानें को तैयार है । पर ये "राह -ऐ -इश्क " हासिल उन खुस -नसीबों को ही होती है जिन्होनें अपने को मिटानें की कला सीख ली है। यह म्रत्यु की कला है , अपनें को डुबानें की कला है , अपनें को खोने की कला है । और यदि दम तोड़ती हुई मनुष्यता को बचाना है , जिंदा रखना है तो इस कला की साधना में मनुष्य को देर सवेर उतरना ही पड़ेगा ।
हार्दिक शुभ -कामनाओं एवं आत्मिक प्रेम सहित - तुम्हारा शुभेच्छु ---सत्येन्द्र मिश्रा
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्ण दमोदरम वासुदेवं हरिम ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रम भजे । ।
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरं राधिकराधितम ।
इंदिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
देवकीनन्दनं नन्दजम संदधे । ।
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्ण दमोदरम वासुदेवं हरिम ।
सोमवार, 7 अप्रैल 2008
रविवार, 6 अप्रैल 2008
श्री दुर्गा बत्तीस नाम माला
"देवगण! सुनो - यह रहस्य अत्यन्त गोपनीय व दुर्लभ है । मेरी बत्तीस नामों की माला सब प्रकार की आपत्ति का विनाश करने वाली है । तीनों लोकों में इसके समान कोई स्तुति नहीं है -
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी ।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी । ।
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा ।
दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला । ।
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी ।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता । ।
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी ।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी । ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।
दुर्गमान्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी । ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ।
नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः । ।
जो देवगण, मनुष्य और दैत्य इस नाम माला का पाठ करता है ; वह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है ।
.....................प्रस्तुति :- तरुण मिश्रा
शनिवार, 5 अप्रैल 2008
बधाई संदेश
नमस्ते , नमस्कार ,शुभ प्रभात आप सभी मित्रों को स्वामी तरुण मिश्रा की ओरसे नव संवत २०६५ ,दुर्गा पूजा और झूलेलाल जयंती की हार्दिक शुभ कामनाएं .............................
उर में उत्साह रहे हर पल , विकसित हों तीनों तन ,मन ,धन ,
स्वर्णिम प्रभात लेकर आये , जो वर्ष आ रहा है नूतन ।
पुष्पित हो और पल्लवित हो , आप का सघन जीवन उपवन ,
सस्नेह बन्धु स्वीकार करो स्नेहिल उर का अभिनन्दन
एक कहानी सुनों किश्तों में
मालिक तूफ़ान , भयानक तूफ़ान , समुद्री तूफ़ान आदि आवाजों के शोर ने सौदागर के दिल में घबराहट भर दी
तभी अनेक नौकर चाकर जहाज के निचले हिस्से से दौड़ते ऊपर आये । समुद्र का गर्जन , समुद्री हवा के झोंके भयंकर तूफ़ान में बदल चुके थे और समुद्री लहरें अजगर की तरह मुंह फाड़ते हुए जहाज को निगलने के लिए बेताव थीं । उसके सेवक गण जहाजी और जहाज के अन्य यात्री भी अपने - अपने केविनों में से निकलकर ऊपर डेक पर आ गए । जहाज समुद्र की सतह पर कागज की नाव की तरह हिलोरें ले रहा था । जहाज पर मची भगदड़ और चिल्ल -पों को चीरती हुई जहाज के कप्तान की आवाज आई ," जहाज नियंत्रण से बाहर हो गया है । " सौदागर भय से थर - थर कापने लगा । परमात्मा, अल्लाह, परवरदिगार आदि जितने भी उसे भगवन के पर्यायवाची याद थे , उसने सभी को पुकारना चाहा लेकिन वाणी ने उसका साथ छोड़ दिया । उसकी जुवान सूखकर चमड़े के टुकड़े जैसी हो गई । तालू में जैसे कांटे निकल आए । भयभीत सौदागर ने अपने सूखे और पपड़ी नुमां होठों पर जीभ फेरी मगर सफल न हो सका । उसे अपनी नानी याद आ गई , " वह कहा करती थी पापियों , दुराचारिओं , झूठे , कपटी , बेईमान और मक्कार लोगों के मुह से मरते वक़्त परमात्मा का नाम नहीं निकलता क्योंकि इनको परमात्मा का नाम लेने का अभ्यास जो नहीं होता । "
सौदागर के ह्रदय को नानी की स्मृति ने और अधिक कम्पाय मान कर दिया । क्या उसका भी अंत समय आ गया है ? क्या वोह भी पापी है ? दुराचारी है ........? उसके मुंह से परमात्मा का नाम क्यों नहीं निकल रहा ? उसकी नज़रों के सामनें ऐसे अनेकों दृश्य आने लगे जब उसनें कपट , झूठ , बेईमानी और मक्कारी भरा आचरण किया । तभी जहाज को समुद्र की तूफानी लहरों ने हवा में दस - बारह फीट ऊँचा उछाल दिया । सौदागर ने जोर से आँखें भींच लीं - वह चिल्लाया , " हे भगवान ! मुझे प्रायश्चित का एक मौका तो दे ! इतना निर्दई मत बन , मैं नालायक ही सही लेकिन तेरा बेटा हूँ । एक मौका दे - सिर्फ़ एक मौका । यदि तू यह मौका अपने नाचीज बेटे को बख्श्ता है तो मैं अपने शहर पहुंचते ही अपना प्यारा शीश- महल जो मेरी सबसे अजीज चीजों में नम्बर एक पर है बेच डालूँगा और उस धन को गरीबों , भिखारिओं और जरूरतमंदों में बाँट कर तेरे रास्ते पर चल पडूंगा ।
सौदागर की चीखों से वहां भगदड़ मचा रहे लोगों में सन्नाटा पसर गया । केवल समुद्र की गर्जना और सौदागर की चीखों के अलावा वहां कोई आवाज नही आ रही थी । मानों सौदागर की प्रार्थना समुद्र हर्ष ध्वनि के साथ स्वीकार कर ईश्वर के दरबार के लिए अग्रसारित कर रहा हो । न जानें कितनी बार सौदागर ने अपनी प्रार्थना दोहराई और निढाल होकर फर्श पर लुडक गया ..........शेष अगले अंक में
*************************************************
गुरुवार, 3 अप्रैल 2008
एक जबाव चाहिए
गुल रुखों से भी रूसनास रही ।
जाने क्या बात है किइस पर भी ,
जिंदगी उम्र भर उदास रही ?
मधुशालायें पास थीं , दूर नहीं । सुंदर मुखडों वाले लोग निकट थे, परिचय था उनसे ।---------------------- "मैकदों के भी आस पास रही" ,
शराब भी पी , विस्मरण भी किया , मधुशाला पास ही थी ।
गुलरुखों से भी रूसनास रही
फूल जैसे सुंदर चेहरे वाले व्यक्तित्वों से भी परिचय रहा । मुलाकात रही । मधुशाला में भी विस्मरण किया ; प्रेम में भी डूबे - लेकिन फिर भी कुछ बात ............
"जाने क्या बात है कि इस पर भी, जिन्दगी उम्र भर उदास रही?"
एक सवाल छोड़ रहा हूँ - एक ऐसा सवाल जिसका जवाब अगर मिल जाए ।तो इस् जगत के सारे सारे सवाल भी मिट जायें । केवल एक जवाब चाहिए जो उम्र भर कि उदासी मिटा दे । आप सभी मित्रों से मदद चाहिए , इस एक जवाब को खोजने में । मदद , हेल्प .....................सहायता - तुम्हारा शुभेच्छु ;- स्वामी सत्येन्द्र माधुर्य
सोमवार, 31 मार्च 2008
मुशायरा
" वह शख्स सूरमा है , मगर बाप भी तो है ,
रोटी खरीद लाया है , तलवार बेचकर ॥
दूसरा है :-
कितने मजबूर हैं इस दौर के बूढे मां-बाप ,
अपने बच्चों को नसीहत भी नही कर सकते ॥
तीसरा है:-
वो क्या नदीम कोई इंकलाब लाएगा ,
जो हर कदम पर सहारे की तलाश करता है ॥
शनिवार, 29 मार्च 2008
जो मागोगे वाही मिलेगा... ३ (गतांक से आगे )
प्रिय मित्रो ,
मेने सुना है , एक सम्राट युद्ध जीत कर घर वापस लौट रहा था । उसकी एक हजार रानियाँ थीं , उसने ख़बर भेजी कि में तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊं । किसी ने कहा , हीरों का हार ले आना । किसी ने कहा , उस देश में कस्तूरी - मृग की गंध मिलती है , वह ले आना । किसी ने कहा , वहां के रेशम का कोई जबाव नहीं , तो रेशम की रंग - बिरंगी सारियां ले आना । ऐसे सभी रानियों ने अपनी अपनी अक्ल के हिसाब से जितना कुछ मांग सकतीं थीं वह - वह माँगा । एक रानी ने कहा , कि तुम घर आ जाओ , तुम बहुत हो । उस दिन तक उसने इस रानी पर कोई ध्यान ही नहीं दिया था । हजार रानियों में एक थी , कहीं पड़ी थी रनवास के किसी अंधेरे कोनें में । एक नम्बर मात्र थी , कोई व्यक्ति नहीं थी : लेकिन राजा जब घर लौटा तो उसने उस रानी को पटरानी बना दिया । और रानियों नें कहा , " यह क्या हुआ ? किस कारण ? " राजा ने कहा , " अकेले इसी ने कहा कि तुम घर आ जाओ । और कुछ नहीं चाहिए : तुम आ गए , सब आ गया । इसने मेरा मूल्य स्वीकारा । तुम में किसी नें हीरे मांगे ,
किसी ने सारियां , किसी नें इत्र माँगा , और हजार चीजें मांगीं - मेरा उपयोग किया । ठीक है , तुमनें जो माँगा , तुम्हारे लिए ले आया । इसने कुछ भी नहीं माँगा । इसके लिए मैं आया हूँ ।"
परमात्मा सिर्फ़ उसके द्वार पर दस्तक देता है जिसनें कुछ भी न माँगा ; जिसने कहा ,
ऐसे ही बहुत दिया है , बस मेरा धन्यबाद स्वीकार कर लो ।
और अंत में एक शेर के साथ --
"कभी उन मद भरी आंखों से पिया था इक जाम ,
आज तक होश नहीं , होश नहीं , होश नहीं । ।"
ढेरों शुभ -कामनाओं , प्यार एवं आशीर्वाद सहित ....................................... तुम्हारा मित्र सत्येन्द्र
शुक्रवार, 21 मार्च 2008
शुभ होली
घर का रहा न घाट का , ज्यों धोबी का स्वान
अज्ञान का अर्थ ज्ञान का अभाव नही है- जैसी कि अज्ञान की हम आम राय में शाब्दिक परिभाषा करते है
अधूरे ज्ञान को पूर्ण ज्ञान मान लेना ही अज्ञान है । मेरे प्रिय मित्रो ,शुभ चिन्तको , मेरे नौजवान साथियों मेरे बुजुर्ग मित्रो , थोड़ी दृष्टि विस्तार करो तो तुम्हें भी यह साफ साफ दिखने लगेगा किआज भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व कि मनुष्यता कमोवेश इस प्रकार के अज्ञान से ग्रस्त है ।
परिणाम सामने हैहमने जो कुछ पाया उसकी हजारों गुनी कीमत चुकाई है। विकास के लिए हमने प्रकृति को विनष्ट किया , प्रति स्पर्धा में हमने प्रेम गवा दिया । बुद्धि के बदले ह्रदय और स्वहित के बदले हमने सुब कुछ खो डाला ।
आज प्रेम एवं समर्पण के पावन त्यौहार "होली " का प्रेम मई संदेश आप के चिंतन के लिए -भाव पूर्ण ह्रदय से पेश कर रहा हूँ । निश्चय ही आप के प्रेम रंग में मेरी आत्मा तक सराबोर हो जायेगी ।
न कुछ हम हंस के सीखे है , न कुछ हम रो के सीखे है ।
जो कुछ थोड़ा सा सीखे है , किसी के हो के सीखे है ।
प्रेम मई होली पर रंग - बिरंगी शुभकामनाओं के साथ :- स्वामी सत्येन्द्र माधुर्य ।
गुरुवार, 20 मार्च 2008
जो मांगोगे वही मिलेगा ...२ (गतांक से आगे )
हमने कल्पना की की स्वर्ग में कल्प वृक्ष होंगे , उनके नीचे आदमी बैठेगा । इच्छा करेगा , करते ही इच्छा पूरी हो जायेगी । लेकिन अगर आपको कल्प वृक्ष मिल जाये , तो बहुत सम्हलकर उसके नीचे बैठना । क्योंकि आपकी इच्छाओं का कोई भरोसा नहीं है ।
मैंने एक कहानी सुनी है । एक दफा एक आदमी - हमारे -आपके ही जैसा एक आदमी -भूल से कल्प वृक्ष के नीचे पंहुच गया । उसको पता भी नहीं था कि यह कल्प वृक्ष है । उसके नीचे बैठते ही उसको लगा कि बहुत भूख लगी है : अगर कहीं भोजन मिल जाता तो .... । वह एक दम चौंका , एक दम भोजन की थालियाँ चारो तरफ आ गईं । वह थोड़ा डरा भी कि यह क्या मामला है , कोई भूत प्रेत तो नही है यहाँ ! कहीं यहाँ कोई भूत प्रेत न हो ! उसके ऐसा सोचते ही - भोजन की थालियाँ गायब हो गईं , भूत प्रेत चारों ओर खडे हो गए । वह घबराया ! यह तो बडा उपद्रव है कोई गला न दबा दे ! भूत प्रेतों ने उसका गला दबा दिया ।
आपको अगर कल्प वृक्ष मिल जाये तो भाग जाना , क्योंकि आपको अपनी इच्छाओं का कोई पक्का पता नहीं की आप क्या मांग बैठेंगे । क्या आप के भीतर से निकल आएगा । आप झंझट में पड़ जायेंगे , वहां पूरा हो जाता है सब कुछ ..................................... ।
होली की हार्दिक शुभकामनायें ....
शनिवार, 8 मार्च 2008
जो मागोगे वही मिलेगा
सामान्य रूप से यह देखनें में आता है कि हमारी इच्छाएं विरोधी हैं । हम जो भी मांग करते है वे एक दूसरे को काट देतीं है । और मजेदार बात यह है कि यह अस्तित्व हमारी मांगें पूरी कर देता है लेकिन जो हम मांग रहे है उसका हमे भी पता नहीं है । हमने कल जो मागा था - आज उससे इंकार कर देते हैं । आज अभी जो हमारी सबसे तीव्र अकंछा है वह साँझ होते- होते बदल जाती है । इस तरह हम कितनी ही इच्छाएँ इस विराट अस्तित्व रूपी के आगे रख चुके हैं - कि अगर वह सब पूरी करे , तो आप पागल होने से बच नहीं सकते । कोई उपाय नहीं जो आपको पागल होनें से बचा सके।
और उसने हमारी सब मांगें पूरी कर दीं हैं ।
जिन्होनें धर्म को गहरे में जाकर अनुभव किया है, वे जानते हैं कि आदमी की जो भी मांगें हैं , वे सब पूरी हो जाती हैं । यही आदमी की मुसीबत है। ---------क्रमश :
रविवार, 2 मार्च 2008
समाधान : स्वामी सत्येन्द्र माधुर्य
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
रविवार, 24 फ़रवरी 2008
सत्य का निजी अनुभव है :- तत्व ज्ञान
स्मृति ज्ञान नहीं है । ज्ञान का अर्थ है अनुभव । कृष्ण कहते हैं , ज्ञानिओं, ज्ञानवानों , का तत्व ज्ञान मैं ही हूँ , अनुभव मैं ही हूँ। अर्थात उस निजी अनुभव मैं जो जाना जाता है , वही परमात्मा है ।
परमात्मा के सम्बन्ध मैं जानना परमात्मा नहीं है। टू नो अबाउट गोड इस नाट टू नो गोड। यानि कि पमात्मा की बाबत जानना झूठा ज्ञान है - मिथ्या जानकारियों का संग्रह है और परमात्मा को जानना ही तत्व -ज्ञान है ।
Do you want to getting top........Courtesy Towards All
शनिवार, 23 फ़रवरी 2008
अध्यात्मिक शायरी
यूं अचानक तेरी आवाज़ कहीं से आई जैसे परबत का जिगर चीर के झरना फूटे।
संकल्प
.................. स्वामी सत्येन्द्र माधुर्य .