शनिवार, 29 मार्च 2008

जो मागोगे वाही मिलेगा... ३ (गतांक से आगे )

"एक राजा , एक हजार रानियाँ "
प्रिय मित्रो ,
मेने सुना है , एक सम्राट युद्ध जीत कर घर वापस लौट रहा था । उसकी एक हजार रानियाँ थीं , उसने ख़बर भेजी कि में तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊं । किसी ने कहा , हीरों का हार ले आना । किसी ने कहा , उस देश में कस्तूरी - मृग की गंध मिलती है , वह ले आना । किसी ने कहा , वहां के रेशम का कोई जबाव नहीं , तो रेशम की रंग - बिरंगी सारियां ले आना । ऐसे सभी रानियों ने अपनी अपनी अक्ल के हिसाब से जितना कुछ मांग सकतीं थीं वह - वह माँगा । एक रानी ने कहा , कि तुम घर आ जाओ , तुम बहुत हो । उस दिन तक उसने इस रानी पर कोई ध्यान ही नहीं दिया था । हजार रानियों में एक थी , कहीं पड़ी थी रनवास के किसी अंधेरे कोनें में । एक नम्बर मात्र थी , कोई व्यक्ति नहीं थी : लेकिन राजा जब घर लौटा तो उसने उस रानी को पटरानी बना दिया । और रानियों नें कहा , " यह क्या हुआ ? किस कारण ? " राजा ने कहा , " अकेले इसी ने कहा कि तुम घर आ जाओ । और कुछ नहीं चाहिए : तुम आ गए , सब आ गया । इसने मेरा मूल्य स्वीकारा । तुम में किसी नें हीरे मांगे ,
किसी ने सारियां , किसी नें इत्र माँगा , और हजार चीजें मांगीं - मेरा उपयोग किया । ठीक है , तुमनें जो माँगा , तुम्हारे लिए ले आया । इसने कुछ भी नहीं माँगा । इसके लिए मैं आया हूँ ।"
परमात्मा सिर्फ़ उसके द्वार पर दस्तक देता है जिसनें कुछ भी न माँगा ; जिसने कहा ,
ऐसे ही बहुत दिया है , बस मेरा धन्यबाद स्वीकार कर लो ।
और अंत में एक शेर के साथ --
"कभी उन मद भरी आंखों से पिया था इक जाम ,
आज तक होश नहीं , होश नहीं , होश नहीं । ।"
ढेरों शुभ -कामनाओं , प्यार एवं आशीर्वाद सहित ....................................... तुम्हारा मित्र सत्येन्द्र

2 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुन्दर भाव,धन्यवाद एक सुन्दर विचार देने के लिये.

tarun mishra ने कहा…

dhanyabad raj........

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