एक मुशायरे में जाने का मौका मिला, कुछ शेर ह्रदय को छू गए ।  आपको भी अच्छे लगेंगे ऐसा मेरा विश्वाश है:-
     " वह शख्स सूरमा है , मगर बाप भी तो है  ,
        रोटी खरीद लाया है , तलवार बेचकर ॥ 
दूसरा है :-
         कितने मजबूर हैं इस दौर के बूढे  मां-बाप , 
          अपने बच्चों को नसीहत भी नही कर सकते ॥ 
तीसरा है:-
         वो क्या नदीम कोई इंकलाब लाएगा ,
         जो हर कदम पर सहारे की तलाश करता है ॥ 
सोमवार, 31 मार्च 2008
मुशायरा
Posted by tarun mishra on 2:01 pm



1 टिप्पणियाँ:
सुन्दर!
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