सोमवार, 31 मार्च 2008

मुशायरा

एक मुशायरे में जाने का मौका मिला, कुछ शेर ह्रदय को छू गए । आपको भी अच्छे लगेंगे ऐसा मेरा विश्वाश है:-
" वह शख्स सूरमा है , मगर बाप भी तो है ,
रोटी खरीद लाया है , तलवार बेचकर ॥
दूसरा है :-
कितने मजबूर हैं इस दौर के बूढे मां-बाप ,
अपने बच्चों को नसीहत भी नही कर सकते ॥
तीसरा है:-
वो क्या नदीम कोई इंकलाब लाएगा ,
जो हर कदम पर सहारे की तलाश करता है ॥

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