शनिवार, 5 अप्रैल 2008

एक कहानी सुनों किश्तों में

पुराने समय की बात है । एक सौदागर , दूर देश से अपने शहर को लौट रहा था । महीनों की समुद्री यात्रा करने के बाद , अब उसके अपने शहर की दूरी केवल एक रात की शेष रह गई थी । समुद्री सफर से बेहाल वह सौदागर जहाज के डेक पर खड़ा हुआ बड़ी बेसब्री से अपने शहर की दिशा में देख रहा था । जहाज के गोदाम में , उसका करोड़ो रुपए का माल सुरक्षित रखा हुआ था , जिसे दो दिन बाद शहर के बाजारों में बेचकर लाखों रुपए का मुनाफा कमाने के हसीन सपनें उसकी आंखों में तैर रहे थे । एक महीनें की छुट्टी लेकर अपने शानदार महल में , शाही आराम गाह में चेन की बंशी बजाने के ख्वाब , अपनी परी चेहरा बीवी के रेशमी पहलू में मुंह छुपाकर , महीनों की थकान से छुटकारा पाने की कल्पना । और न जानें क्या - क्या उसके जेहन में उमड़ - घुमड़ रहा था । रात गहराती जा रही थी , समुद्री हवा के नमकीन झोंके न जानें कब आंधी के थपेड़ों में बदल गए , उसे ख्याल ही नहीं रहा । अचानक एक तेज हवा के झोंके ने , खारे पानी की एक तेज लहर ने और हिचकोले खाते हुए जहाज नें उसको सपनों की दुनिया से बाहर खींचा ।



मालिक तूफ़ान , भयानक तूफ़ान , समुद्री तूफ़ान आदि आवाजों के शोर ने सौदागर के दिल में घबराहट भर दी

तभी अनेक नौकर चाकर जहाज के निचले हिस्से से दौड़ते ऊपर आये । समुद्र का गर्जन , समुद्री हवा के झोंके भयंकर तूफ़ान में बदल चुके थे और समुद्री लहरें अजगर की तरह मुंह फाड़ते हुए जहाज को निगलने के लिए बेताव थीं । उसके सेवक गण जहाजी और जहाज के अन्य यात्री भी अपने - अपने केविनों में से निकलकर ऊपर डेक पर आ गए । जहाज समुद्र की सतह पर कागज की नाव की तरह हिलोरें ले रहा था । जहाज पर मची भगदड़ और चिल्ल -पों को चीरती हुई जहाज के कप्तान की आवाज आई ," जहाज नियंत्रण से बाहर हो गया है । " सौदागर भय से थर - थर कापने लगा । परमात्मा, अल्लाह, परवरदिगार आदि जितने भी उसे भगवन के पर्यायवाची याद थे , उसने सभी को पुकारना चाहा लेकिन वाणी ने उसका साथ छोड़ दिया । उसकी जुवान सूखकर चमड़े के टुकड़े जैसी हो गई । तालू में जैसे कांटे निकल आए । भयभीत सौदागर ने अपने सूखे और पपड़ी नुमां होठों पर जीभ फेरी मगर सफल न हो सका । उसे अपनी नानी याद आ गई , " वह कहा करती थी पापियों , दुराचारिओं , झूठे , कपटी , बेईमान और मक्कार लोगों के मुह से मरते वक़्त परमात्मा का नाम नहीं निकलता क्योंकि इनको परमात्मा का नाम लेने का अभ्यास जो नहीं होता । "

सौदागर के ह्रदय को नानी की स्मृति ने और अधिक कम्पाय मान कर दिया । क्या उसका भी अंत समय आ गया है ? क्या वोह भी पापी है ? दुराचारी है ........? उसके मुंह से परमात्मा का नाम क्यों नहीं निकल रहा ? उसकी नज़रों के सामनें ऐसे अनेकों दृश्य आने लगे जब उसनें कपट , झूठ , बेईमानी और मक्कारी भरा आचरण किया । तभी जहाज को समुद्र की तूफानी लहरों ने हवा में दस - बारह फीट ऊँचा उछाल दिया । सौदागर ने जोर से आँखें भींच लीं - वह चिल्लाया , " हे भगवान ! मुझे प्रायश्चित का एक मौका तो दे ! इतना निर्दई मत बन , मैं नालायक ही सही लेकिन तेरा बेटा हूँ । एक मौका दे - सिर्फ़ एक मौका । यदि तू यह मौका अपने नाचीज बेटे को बख्श्ता है तो मैं अपने शहर पहुंचते ही अपना प्यारा शीश- महल जो मेरी सबसे अजीज चीजों में नम्बर एक पर है बेच डालूँगा और उस धन को गरीबों , भिखारिओं और जरूरतमंदों में बाँट कर तेरे रास्ते पर चल पडूंगा ।
सौदागर की चीखों से वहां भगदड़ मचा रहे लोगों में सन्नाटा पसर गया । केवल समुद्र की गर्जना और सौदागर की चीखों के अलावा वहां कोई आवाज नही आ रही थी । मानों सौदागर की प्रार्थना समुद्र हर्ष ध्वनि के साथ स्वीकार कर ईश्वर के दरबार के लिए अग्रसारित कर रहा हो । न जानें कितनी बार सौदागर ने अपनी प्रार्थना दोहराई और निढाल होकर फर्श पर लुडक गया ..........शेष अगले अंक में
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1 टिप्पणियाँ:

tarun mishra ने कहा…

nice story please publish the next episode .....................................................

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