सोमवार, 5 मई 2008

ढाई आखर

मेरे प्यारे दोस्तो ,
ठीक एक महीने के बाद मैं फ़िर आपकी महफ़िल में आ गया हूँ । प्रेम के ढाई आखर और ढेरों शुभ - कामनाओं के साथ। एक शेर आपके विचार के लिए पेश है । कृपया दिल खोल कर अपनी टिप्पणीभेजें । :-
"दिल है तो उसी का है , जिगर है तो उसी का है ,
अपने को राह -ऐ -इश्क में बर्बाद जो कर दे । "
बस उसी का दिल -दिल है , जिगर , जिगर है ----प्रेम की राह पर जो अपनें को पूरा का पूरा मिटानें को तैयार है । पर ये "राह -ऐ -इश्क " हासिल उन खुस -नसीबों को ही होती है जिन्होनें अपने को मिटानें की कला सीख ली है। यह म्रत्यु की कला है , अपनें को डुबानें की कला है , अपनें को खोने की कला है । और यदि दम तोड़ती हुई मनुष्यता को बचाना है , जिंदा रखना है तो इस कला की साधना में मनुष्य को देर सवेर उतरना ही पड़ेगा ।
हार्दिक शुभ -कामनाओं एवं आत्मिक प्रेम सहित - तुम्हारा शुभेच्छु ---सत्येन्द्र मिश्रा

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