मेरे प्यारे दोस्तो ,
                     ठीक एक महीने के बाद  मैं फ़िर  आपकी महफ़िल  में  आ गया हूँ । प्रेम  के ढाई  आखर  और  ढेरों  शुभ - कामनाओं  के साथ। एक शेर  आपके  विचार  के लिए पेश  है । कृपया  दिल खोल कर  अपनी  टिप्पणीभेजें । :-
                             "दिल   है  तो    उसी   का  है  ,  जिगर  है   तो  उसी  का  है ,
                                अपने   को   राह -ऐ -इश्क  में  बर्बाद    जो   कर      दे   । "
         बस उसी का दिल -दिल है ,  जिगर    , जिगर  है ----प्रेम की राह पर जो अपनें को पूरा का पूरा मिटानें  को तैयार  है । पर ये "राह -ऐ -इश्क "  हासिल  उन  खुस -नसीबों  को ही होती  है जिन्होनें  अपने को मिटानें  की  कला  सीख ली है।  यह  म्रत्यु की कला है , अपनें  को डुबानें  की कला है , अपनें को खोने की कला है । और  यदि  दम तोड़ती  हुई मनुष्यता  को बचाना  है , जिंदा रखना  है तो  इस कला की साधना  में  मनुष्य  को देर  सवेर  उतरना  ही पड़ेगा ।
                            हार्दिक  शुभ -कामनाओं  एवं  आत्मिक  प्रेम सहित - तुम्हारा  शुभेच्छु ---सत्येन्द्र मिश्रा
सोमवार, 5 मई 2008
ढाई आखर
Posted by tarun mishra on 3:50 pm



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