उम्र भर रेंगते रहने से कहीं बेहतर है , एक लम्हा जों तेरी रूह मैं बुसअत( विशालता) भर दे ।
यूं अचानक तेरी आवाज़ कहीं से आई जैसे परबत का जिगर चीर के झरना फूटे।
शनिवार, 23 फ़रवरी 2008
अध्यात्मिक शायरी
Posted by tarun mishra on 11:15 pm
उम्र भर रेंगते रहने से कहीं बेहतर है , एक लम्हा जों तेरी रूह मैं बुसअत( विशालता) भर दे ।
यूं अचानक तेरी आवाज़ कहीं से आई जैसे परबत का जिगर चीर के झरना फूटे।
1 टिप्पणियाँ:
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ashwani
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