शनिवार, 8 मार्च 2008

जो मागोगे वही मिलेगा

जो इच्छा करिहौ मन माहीं , राम कृपा कछु दुर्लभ नाही
सामान्य रूप से यह देखनें में आता है कि हमारी इच्छाएं विरोधी हैं । हम जो भी मांग करते है वे एक दूसरे को काट देतीं है । और मजेदार बात यह है कि यह अस्तित्व हमारी मांगें पूरी कर देता है लेकिन जो हम मांग रहे है उसका हमे भी पता नहीं है । हमने कल जो मागा था - आज उससे इंकार कर देते हैं । आज अभी जो हमारी सबसे तीव्र अकंछा है वह साँझ होते- होते बदल जाती है । इस तरह हम कितनी ही इच्छाएँ इस विराट अस्तित्व रूपी के आगे रख चुके हैं - कि अगर वह सब पूरी करे , तो आप पागल होने से बच नहीं सकते । कोई उपाय नहीं जो आपको पागल होनें से बचा सके।
और उसने हमारी सब मांगें पूरी कर दीं हैं ।
जिन्होनें धर्म को गहरे में जाकर अनुभव किया है, वे जानते हैं कि आदमी की जो भी मांगें हैं , वे सब पूरी हो जाती हैं । यही आदमी की मुसीबत है। ---------क्रमश :

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