मंगलवार, 6 मई 2008

एक कहानी किश्तों में (गतांक से आगे )

सुबह सौदागर की जब आँख खुली तो उसनें पाया कि उसका व्यक्तिगत सेवक काफी का प्याला लिए खड़ा था । उसके चेहरे पर बड़ी मोहक मुस्कान थी , आंखों में असीम कृतज्ञता और मुद्रा में अलौकिक श्रद्धा का भाव । सौदागर कि समझ में कुछ नहीं आया । सेवक कॉफी रख कर चला गया । वह उठा और तरोताज़ा होकर कॉफी के घूँट भरने लगा । अचानक रात के तूफानी दृश्य उसके जेहन के दृश्य पटल पर चल चित्र की भांति चलनें लगे यकायक सेवक की मुद्रा का राज़ उसकी समझ में आ गया । एकबारगी कॉफी के घूँट की कड़वाहट बढ़ गई , उसने मुंह में भरी कॉफी उगालदान में जाकर उगल दी । वह कॉफी छोड़ कर बाहर आया । उसने एक नाविक को आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया । कल का अक्खड़ नाविक उसकी आवाज़ सुन कर मक्खन
की तरह पिघल गया । बड़े अदब से बोला ," मालिक हुक्म बजा लाता हूँ ।" सौदागर की रूह एक बार फ़िर काँप उठी फिर भी उसने जी कड़ा करके पूछा ,"शहर कितनी दूर है ?" बस चार घंटे का सफर और बाकी है ,दोपहर ढलते ढलते हम वहां लंगर डाल देंगे । आपकी कृपा से मालिक । " "जी ...जी .... । " सौदागर की जीभ में एक बार फ़िर कांटे से उग आए । वह अनमना सा नाश्ता -कक्ष में पहुँचा । सस्ते सिगार और सस्ती शराब की गंध से उसका सिर भिन्ना गया। लेकिन उसको देखते ही वहां सारे लोग दास भाव से हाथ जोड़कर खड़े हो गए। सौदागर की रीड की हड्डी में सुरसुराहट होनें लगी । सौदागर अपने केबिन की ओर बदहवास दोड़ा , उसकी पुष्ट टाँगें उसके नियंत्रण में नहीं थीं । केविन में प्रवेश करके उसने दरवाजा बंद कर लिया ," ये क्या हो गया ? मैनें कैसी मूर्खता की ?"वह बड़बड़ाया । " दोपहर तक मेरे प्रायश्चित की ख़बर पूरे शहर में होगी । लोग मुझे देवदूत मान रहें हैं । हाय ! मेरा प्यारा शीशमहल । कितनी तिकड़म से उसे हतियाया था । शहर की जमीन पर पैर रखते ही पराया हो जाएगा " वह चिल्लाया , " यदि प्रार्थना करनी ही थी तो सबके सामने करने की जगह अगर मन में ही कर लेता तो क्या बिगड़ जाता ? " उसे अपनी मरी हुयी नानी पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था । उसे भी उसी समय अपनी नसीहत याद दिलानी थी । " उफ़ .......उफ़ । " सौदागर ने अपना सर पलंग की मसहरी पर धडाक से मारा . सौदागर एक बार फ़िर बेहोश हो गया । .................................................क्रमशः
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